हिज़्बुल्लाह और इसराइल(Hezbollah and Isreal)के बीच युद्धविराम: किसकी जीत?

27 नवंबर 2024 को लेबनान में ईरान समर्थित Hezbollah and Isreal के बीच हुआ युद्धविराम समझौता मध्य-पूर्व की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। पिछले एक साल से जारी इस संघर्ष के समाप्त होने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि इस संघर्ष में कौन विजयी हुआ।

पृष्ठभूमि

अक्तूबर 2023 में ग़ज़ा में इसराइल के सैन्य अभियान की शुरुआत के साथ ही हिज़्बुल्लाह ने लेबनान से इसराइल पर रॉकेट हमले शुरू कर दिए। ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह ने खुलकर हमास का समर्थन किया, जिससे इसराइल को एक साथ दो मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा। लेकिन इस संघर्ष का प्रभाव केवल सैन्य ताकत के प्रदर्शन तक सीमित नहीं रहा; यह दोनों पक्षों की रणनीतिक स्थिति और भविष्य की राजनीति को भी प्रभावित कर गया।

इसराइल की दृष्टि से जीत

इसराइल ने इस संघर्ष को अपने लिए रणनीतिक बढ़त के रूप में प्रस्तुत किया। इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने समझौते की घोषणा करते हुए दावा किया कि हिज़्बुल्लाह को इस संघर्ष में पराजित किया गया है और हमास अब अलग-थलग पड़ गया है।

हमास और हिज़्बुल्लाह के संबंधों में दरार: इसराइल के अंग्रेज़ी अख़बार हारेत्ज़ के स्तंभकार रावित हेच्ट ने इसराइल की रणनीतिक सफलता पर प्रकाश डाला। उनका कहना है कि हमास और हिज़्बुल्लाह के बीच संपर्क टूटना इसराइल के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है।

हिज़्बुल्लाह की सैन्य क्षति: रिपोर्ट्स के अनुसार, हिज़्बुल्लाह को भारी सैन्य क्षति का सामना करना पड़ा है, जिससे उनकी ताकत कमज़ोर हुई है। माना जा रहा है कि उन्हें अपनी पुरानी स्थिति में लौटने के लिए लंबा समय लगेगा।

हिज़्बुल्लाह की स्थिति

हालांकि हिज़्बुल्लाह ने इस युद्ध में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और ईरान के समर्थन से इसराइल पर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन युद्धविराम समझौते के बाद उसकी स्थिति कमजोर होती दिखाई दे रही है। हिज़्बुल्लाह के लिए यह संघर्ष एक लंबी थकावट की लड़ाई साबित हुई।

आंतरिक और बाहरी दबाव: लेबनान की जनता इस लंबे संघर्ष से थक चुकी है। इसके साथ ही, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी ईरान समर्थित इस संगठन पर दबाव बनाया, जिससे हिज़्बुल्लाह के लिए अपना समर्थन बनाए रखना मुश्किल हो गया।

सामरिक पुनर्गठन की आवश्यकता: हिज़्बुल्लाह को अब अपनी ताकत को फिर से संगठित करने और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए समय और संसाधनों की आवश्यकता होगी।

क्षेत्रीय राजनीति पर प्रभाव

इस समझौते का सबसे बड़ा प्रभाव मध्य-पूर्व की राजनीति पर पड़ सकता है। हिज़्बुल्लाह के कमजोर होने से ईरान की रणनीतिक पकड़ में भी कमी आ सकती है। इसके साथ ही, इसराइल अब हमास के खिलाफ अपनी कार्रवाई को और तेज़ करने के लिए स्वतंत्र हो सकता है।

निष्कर्ष

युद्धविराम समझौते के बाद दोनों पक्ष अपने-अपने नजरिए से इसे जीत के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, सैन्य और राजनीतिक दृष्टि से इसराइल को इस समझौते में अधिक लाभ होता दिखाई दे रहा है। हिज़्बुल्लाह को इस संघर्ष में भारी नुकसान हुआ है और अब उसे अपनी ताकत फिर से हासिल करने में लंबा समय लग सकता है।

इस समझौते के दूरगामी प्रभाव मध्य-पूर्व की स्थिरता और राजनीति पर पड़ेंगे। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि हिज़्बुल्लाह इस नुकसान से उबरकर अपनी ताकत को पुनः स्थापित कर पाता है या इसराइल अपनी स्थिति को और मजबूत करने में सफल होता है।

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