भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज SME IPO में निवेश को लेकर बड़े बदलावों का प्रस्ताव दिया है। अब SME IPO में न्यूनतम एप्लीकेशन साइज बढ़ाकर ₹4 लाख करने का सुझाव दिया गया है। यह कदम रिटेल निवेशकों की भागीदारी को सीमित करने और जोखिम उठाने की क्षमता वाले निवेशकों को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से उठाया गया है।
सेबी का प्रस्ताव: एप्लीकेशन साइज में बदलाव
सेबी के मुताबिक, SME IPO में रिटेल निवेशकों की बढ़ती भागीदारी और उनके द्वारा उठाए जाने वाले जोखिम को देखते हुए यह बदलाव प्रस्तावित है। वर्तमान में SME आईपीओ में न्यूनतम आवेदन राशि ₹1 लाख है, जिसे अब ₹4 लाख तक बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है।
बदलाव का कारण
- SME IPO में रिस्क अधिक होता है।
- लिस्टिंग के बाद बाजार की धारणा (सेंटिमेंट) बदलने पर निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है।
- छोटे रिटेल निवेशकों की सुरक्षा के लिए यह कदम आवश्यक माना जा रहा है।
अन्य प्रमुख प्रस्ताव
- गैर-संस्थागत निवेशकों के लिए अलॉटमेंट पद्धति में बदलाव:
सेबी ने गैर-संस्थागत निवेशकों (Non-Institutional Investors – NII) के लिए अलॉटमेंट प्रक्रिया को पारदर्शी और अधिक संरचित बनाने का प्रस्ताव रखा है। - ‘ऑफर फॉर सेल’ (OFS) की सीमा:
SME IPO में OFS को इश्यू साइज के अधिकतम 20% तक सीमित करने का प्रस्ताव है।
यह कदम प्रमोटर्स द्वारा अपनी हिस्सेदारी बेचने और प्लेटफॉर्म के मूल उद्देश्य को कमजोर करने से रोकने के लिए है।
- फंड के उपयोग की निगरानी:
₹20 करोड़ से अधिक के इश्यू के लिए फंड के उपयोग की कड़ी निगरानी।
फंड के इस्तेमाल की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम।
- मर्चेंट बैंकरों की फीस का खुलासा:
सेबी ने सुझाव दिया है कि SME आईपीओ के प्रॉस्पेक्टस में मर्चेंट बैंकरों को दी जाने वाली फीस का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाए।
SME एक्सचेंज का मूल उद्देश्य
SME एक्सचेंज की स्थापना छोटे और मध्यम उद्यमों (Small and Medium Enterprises – SME) को उनके विकास के लिए पूंजी जुटाने में मदद करने के लिए की गई थी। लेकिन समय के साथ, प्रमोटर्स द्वारा अपनी हिस्सेदारी बेचने की प्रवृत्ति देखी गई है, जिससे SME प्लेटफॉर्म के मूल उद्देश्य पर प्रभाव पड़ा है।
OFS की समस्या
SME IPO में दो पूरी तरह OFS आधारित इश्यू थे, जहां प्रमोटर्स ने पूरी तरह से हिस्सेदारी बेचकर पैसे जुटाए।
52 SME IPO में से 30 में OFS का हिस्सा 20% से अधिक था।
यह दर्शाता है कि SME प्लेटफॉर्म का उद्देश्य केवल प्रमोटर्स के लिए फंड जुटाने का माध्यम बनता जा रहा है।
नए नियमों का असर
रिटेल निवेशकों पर प्रभाव:
- ₹4 लाख का एप्लीकेशन साइज छोटे रिटेल निवेशकों के लिए SME IPO में भागीदारी को कठिन बना देगा।
- केवल बड़े और जोखिम उठाने वाले निवेशक ही SME IPO में आवेदन कर सकेंगे।
प्रमोटर्स पर प्रभाव:
- OFS की सीमा तय होने से प्रमोटर्स को SME प्लेटफॉर्म का अनुचित लाभ उठाने से रोका जाएगा।
- फंड के उपयोग पर निगरानी से प्रमोटर्स को फंड के सही इस्तेमाल के लिए जवाबदेह बनाया जाएगा।
बाजार में पारदर्शिता:
- मर्चेंट बैंकरों की फीस और फंड के उपयोग की स्पष्टता से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
- अलॉटमेंट प्रक्रिया में सुधार से गैर-संस्थागत निवेशकों को बेहतर अवसर मिलेगा।
SME IPO के मौजूदा आंकड़े
2024 में SME आईपीओ के आंकड़ों के मुताबिक, 52 में से 30 IPOs में OFS का हिस्सा 20% से अधिक था।
कई IPOs में प्रमोटर्स ने अपनी हिस्सेदारी बेचकर फंड जुटाए, जिससे SME प्लेटफॉर्म का उद्देश्य कमजोर हुआ। लिंक
निष्कर्ष
सेबी के ये प्रस्ताव SME IPO को एक सुरक्षित और पारदर्शी प्लेटफॉर्म बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। हालांकि, न्यूनतम एप्लीकेशन साइज बढ़ाने से छोटे निवेशकों को नुकसान हो सकता है, लेकिन इससे SME सेक्टर में जोखिम लेने की क्षमता वाले निवेशकों की भागीदारी सुनिश्चित होगी।
SME प्लेटफॉर्म का उद्देश्य छोटे और मध्यम उद्यमों को समर्थन देना है, और सेबी के नए नियम इस उद्देश्य को सही दिशा में ले जाने में सहायक साबित हो सकते हैं।
निवेशकों को सुझाव:
SME IPO में निवेश करने से पहले फंडामेंटल एनालिसिस और जोखिम क्षमता का आकलन जरूर करें।
भविष्य में इन नए नियमों के प्रभाव को समझकर ही SME आईपीओ में दांव लगाएं।
डिस्क्लेमर:
शेयर बाजार में निवेश बाजार के जोखिमों के अधीन है। इस आर्टिकल का उद्देश्य वित्तीय साक्षरता प्रदान करना है, यह निवेश की सलाह नहीं है, कृपया निवेश से पहले अपने फाइनेंसियल एडवाइजर से परामर्श अवश्य कर लें।